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नौ गजा , नवाब दरवाजा एवं पत्थर में बदला चोर

डा. तनवीर अहमद अल्वी द्वारा मुझे सुनाइर् गई बातें


नौ गजा , नवाब दरवाजा एवं पत्थर में बदला चोर
अहम यादगार बाला पीर जिसको लोग अब आमतोर से पीर बाला या नौ गज़ा पीर कह कर याद करते हैं। यह कैराना के कदीम मज़ारात में से है। ऐसे मुतादिद मज़ारात इस हल्के में हैं जो कैराना के आसपास कुछ दूसरे कस्बात पर मुश्तमिल है जिसमें नोगज़ा पीर कहलाने वाले कदीम बुजुर्ग दफन हैं। बाला मा‘सूम बच्चे को कहते हैं। इसलिए बाले मियाॅ के नाम से कई मकामात पर मज़ारात मौजूद है और इससे मुराद यह है कि साहिबे मज़ार ने बहुत थोडी उमर में जिहाद में शिरकत की और एक नुमायाॅ बल्के इमतियाज़ी किरदार अदा किया। ऐसे मज़ारात को नौ गज़ा भी कहते हैं। यह नौगज़ के नहीं हैं मगर एक ज़माने में यह दस्तूर था कि मरने वाले शहीद के झण्डे को उन्हीं के साथ दफन किया जाता था इसी वजह से निशाने कब्र लम्बा होता है।
कैराना के तारीखी मकामात में एक और अहम यादगार नवाब दरवाज़ा है। कभी इस के करीब 1935-40 के दरमियान एक बहुत मोटी कंकरीट की तेह भी नज़र आती थी। इसके एक तरफ शाहजी की मस्जिद है। नवाब दरवाज़ा अब टूट फूट गया लेकिन इसका ैजतनबजनतम बाकी है। इसमें एक तरफ कोई साहब रहने भी लगे हैं। नीचे की हिस्से में भडभूजे ने अपने बान बाॅटने का सामान रख छोडा है। इस तरह से इसे भी कारोबारी युनिट में बदल दिया गया और किसी ने इसकी हिफाज़त नहीं की कार्पोरेशन को भी खयाल नहीं आया कि इतनी बडी यादगार कितनी बुरी हालत में है।
इसके करीब में आगे बढकर वह जगह है जहाॅ हूर का ताज़िया रखा जाता है और उसके करीब एक ऐसा पक्की ईंट का अहाता जिसके अन्दर किसी बुजुर्ग की कब्र है। उससे मिला हुआ एक आडा भूरे रंग का पत्थर खडा है और इसके लिए कहा जाता है कि यह चोर है और इन बुजुर्ग की बददुआ से पत्थर में बदल गया है जबकि यह एक फर्ज़ी बात है और यह टुकडा दरअसल किसी कदीम इमारत का हिस्सा है। जो इस पत्थर से ता‘मीर की गई, इस पत्थर का एक और बडा सा टुकडा छोटे इमाम बाडे के दरवाजे के सामने ज़्ामीन में गडा हुआ है। इनके दरमियान कभी एक बडा महल था जो अपनी ऊॅची ऊॅची दीवारों की वजह से एक खास इमतियाज रखता था। इसका बडा सा फाटक अपनी मेहराब के साथ 1940-50 तक मौजूद था मगर महल के अन्दरूनी आसार शिकस्त व रेख्त का बुरी तरह शिकार थे। इनकी देखभाल का भी कोई इन्तज़ाम नहीं था। यह भी नवाब के अपने महलात में से एक महल था। एक और महल पत्थरों की मस्जिद से इधर हूर के ताजिये के चबूतरे से क़रीब वाके था। इसका दरवाज़ा जो दूसरे दरवाजों के मुकाबले में चैडा था 1935 तक बाकी था और बाकी इमारात की जगह इन छोटे मोटे मकानों ने ले ली थी जिस में चिडीमार रहते थे। यह दरअसल नवाब के अपने खानदान की रिहाईशगाहें थीं।

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