लेखकः उस्ताद सफी कैरानवी--
हिन्दी रूपांतर: उमर कैरानवी
पुस्तक ‘कैराना शरीफ’ उर्दू में है जिसमें 250-300 शे‘रों में कैराना की तारीख बयान की गयी है। आसान शे‘र चुनकर दिये जा रहे हैं।
कैराना शरीफ
न अगर कुफर का खौफ होता मुझे
जहाँ भर से अच्छा कहता इसे
यहाँ के हैं जितने भी दीवार व दर
ता‘स्सुब के गारे से हैं बे खबर
बहुत खूबसूरत हैं सीरत में नेक
यहाँ सौ हैं दुनिया में है कोई एक
गये मक्क़ा में रहमतुल्लाह मियाँ
किया इल्म का वाॅ से दरिया रवाँ
यहाँ पेहलवान हैं जिनों से लडे
सरे दस्त झोटा उठा ले उडे
पढ़ा कलमा गूजर ने बा इश्तियाक़
बदस्त शहन्शाहे अब्दुर्रज़ाक
मुसलमान गूजर जो पहला हुआ
तो उसका हसन नाम रखा गया।
यहाँ के हैं सब केस्त आला नसब
सहारनपुरी के आये हैं सब
पठानों में कूडा था एक नाम का
किसी से ना कुश्ती में वह चित हुआ
यहाँ के जुलाहे भी अन्सार हैं
कि अयूब रजी0 के खास दिलदार हैं।
वह जिस्तर पे दैवी का मन्दिर है एक
ब तरतीब मन्दिर में मन्दिर है एक।
है खुश मन्ज़र और खुश फिज़ा बहार
बने जिसमें बे मिस्ल नक़्श और निगार।
कहें जिसको जिस्तर वह तालाब है
बडा लम्बा चैडा है पुर आब है।
यहाँ के धोबी भी हैं ज़ी शऊर
जो दामन से धब्बे को करते हैं दूर।
यहाँ पीर बाले हैं बाले मियाँ
जो हैं नौ गज़ी कबर के दरमियाँ।
यहाँ पन्जाबी बिसाती भी हैं
यह हैं नेक और नेकों के साथी भी हैं।
घराना है मौसीक़ी का एक यहाँ
जिसे मानता है मयूजिक जहाँ।
जमाने की मौसीक़ी इस जा है मान्द
लगाए हैं नगमा को यहाँ चार चाँद।
नई धुन नई ताल जो दिल को भायें
नये सुर नई सरोतियाँ बहार जायें।
वह थे कौन उस्ताद अब्दुल करीम
नहीं कोई जिनका अदील व सहीम।
वहीदुज़्ज़माँ हैं वहीदुज़्ज़माँ
मयूजिक बदन है ब रूहे रवाँ
शकूर अपना फन लेके पहुँचे जो रूस
गये अहले रूस अपने फन तक से रूस
यह लिखना है बन्दे अली को क़लम
कि ले तानसेन उनके आकर क़दम
यहाँ सात चैपड के बाज़ार हैं
गली कूचे इस जा के गुलज़ार हैं।
यहाँ ईदगाह भी है एक दिलरूबा
बडी दिल कुशा है बहुत खुशनुमा।
पडी जैसे सूरज की इस पर निगाह
तो आता है रोज़ाना वक़्ते पगाह।
वह ख़ाने मुकर्रब थे आली जनाब
मुकर्रब जहाॅगीर के कामयाब।
हसन नाम उनके पिदर का बहा
जहाँगीर के साथ खेला पढ़ा।
जहाँगीर अब तक वही था सलीम
मुकर्रब कहा इसको रखा नदीम
सलीम और हसन में बडा पियार था
हर एक जाँनिसारी को तैयार था।
लगाया था नौलखा एक बाग भी
लगे आम व अमरूद सेब व बही।
दरखत इसमें लाखों किस्म के लगे
सभी सब्ज़ व शादाब फूले फले।
कहें हिन्द में पिस्ता फलती नहीं
मगर बाग बंगला में फूली फली।
बना बाग में हौज़ सीमीं सिफत
इसे संग और गच से किया है करखत।
शिमाल और मग़रिब में दरवाज़ा चार
कि ताके धूप में लोग पायें क़रार।
शिमाल और मशरिक़ खुले घाट हैं
दक्कन की तरफ भी यही ठाट हैं।
नया चबूतरा माहताबी भी है
कमर खासियत में कि आबी भी है।
जो नापा गया हौज में चबूतरा
छियासठ फुटों में वह लम्बा हुआ।
पडीं छोटी छोटी सी थी किश्तियाँ
बत्तखें की तरह हौज़ में फिरतियाँ।
यह छ सौ पिचहत्तर का लम्बा है हौज़
मगर चैदह फुट पुख्ता ऊँचा है हौज।
जहाँ जमना से पानी आता रहा
निकल करके झरनों से जाता रहा।
चली झरनों से पुख्ता लम्बी नहर
गई बाबा पिटटी में जाकर ठहर।
कुऐं तीन सौ साठ अलावा अजीं
वह सब संग खारा के थे सब हसीं
बनी है सरे हौज़ जो सहे दरी
कसौटी के थम से मज़्ायन वह थी
वह थम अब कलन्दर में पहुँचा दिये
कि दुनिया में कोई ना फिर ले सके।
गढ़ी में नहीं काम शाहों से कम
पर अब इसकी हालत पे है दीदा नम
बागबानों की बागबानी को जो थे बागबाँ
उन्हीं की औलाद माली है यहाँ
खुली मुझ पे अब तक ना यह गुलझटी
सवा पहर क्योंकर है कंकर लडी।
नहीं उम्दगी में कुछ इसके कलाम
जिसे दुनिया कहती है बाडा इमाम।
जिन्होंने किया मुखतसर यह बयाँ
सफी है तखल्लुस, हैं महमूद खाँ।
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नोटः पूरी किताब जोकि उर्दू में है
7 feb 2019 men Urdu short Book bhi Daal di
हिन्दी रूपांतर: उमर कैरानवी
पुस्तक ‘कैराना शरीफ’ उर्दू में है जिसमें 250-300 शे‘रों में कैराना की तारीख बयान की गयी है। आसान शे‘र चुनकर दिये जा रहे हैं।
कैराना शरीफ
न अगर कुफर का खौफ होता मुझे
जहाँ भर से अच्छा कहता इसे
यहाँ के हैं जितने भी दीवार व दर
ता‘स्सुब के गारे से हैं बे खबर
बहुत खूबसूरत हैं सीरत में नेक
यहाँ सौ हैं दुनिया में है कोई एक
गये मक्क़ा में रहमतुल्लाह मियाँ
किया इल्म का वाॅ से दरिया रवाँ
यहाँ पेहलवान हैं जिनों से लडे
सरे दस्त झोटा उठा ले उडे
पढ़ा कलमा गूजर ने बा इश्तियाक़
बदस्त शहन्शाहे अब्दुर्रज़ाक
मुसलमान गूजर जो पहला हुआ
तो उसका हसन नाम रखा गया।
यहाँ के हैं सब केस्त आला नसब
सहारनपुरी के आये हैं सब
पठानों में कूडा था एक नाम का
किसी से ना कुश्ती में वह चित हुआ
यहाँ के जुलाहे भी अन्सार हैं
कि अयूब रजी0 के खास दिलदार हैं।
वह जिस्तर पे दैवी का मन्दिर है एक
ब तरतीब मन्दिर में मन्दिर है एक।
है खुश मन्ज़र और खुश फिज़ा बहार
बने जिसमें बे मिस्ल नक़्श और निगार।
कहें जिसको जिस्तर वह तालाब है
बडा लम्बा चैडा है पुर आब है।
यहाँ के धोबी भी हैं ज़ी शऊर
जो दामन से धब्बे को करते हैं दूर।
यहाँ पीर बाले हैं बाले मियाँ
जो हैं नौ गज़ी कबर के दरमियाँ।
यहाँ पन्जाबी बिसाती भी हैं
यह हैं नेक और नेकों के साथी भी हैं।
घराना है मौसीक़ी का एक यहाँ
जिसे मानता है मयूजिक जहाँ।
जमाने की मौसीक़ी इस जा है मान्द
लगाए हैं नगमा को यहाँ चार चाँद।
नई धुन नई ताल जो दिल को भायें
नये सुर नई सरोतियाँ बहार जायें।
वह थे कौन उस्ताद अब्दुल करीम
नहीं कोई जिनका अदील व सहीम।
वहीदुज़्ज़माँ हैं वहीदुज़्ज़माँ
मयूजिक बदन है ब रूहे रवाँ
शकूर अपना फन लेके पहुँचे जो रूस
गये अहले रूस अपने फन तक से रूस
यह लिखना है बन्दे अली को क़लम
कि ले तानसेन उनके आकर क़दम
यहाँ सात चैपड के बाज़ार हैं
गली कूचे इस जा के गुलज़ार हैं।
यहाँ ईदगाह भी है एक दिलरूबा
बडी दिल कुशा है बहुत खुशनुमा।
पडी जैसे सूरज की इस पर निगाह
तो आता है रोज़ाना वक़्ते पगाह।
वह ख़ाने मुकर्रब थे आली जनाब
मुकर्रब जहाॅगीर के कामयाब।
हसन नाम उनके पिदर का बहा
जहाँगीर के साथ खेला पढ़ा।
जहाँगीर अब तक वही था सलीम
मुकर्रब कहा इसको रखा नदीम
सलीम और हसन में बडा पियार था
हर एक जाँनिसारी को तैयार था।
लगाया था नौलखा एक बाग भी
लगे आम व अमरूद सेब व बही।
दरखत इसमें लाखों किस्म के लगे
सभी सब्ज़ व शादाब फूले फले।
कहें हिन्द में पिस्ता फलती नहीं
मगर बाग बंगला में फूली फली।
बना बाग में हौज़ सीमीं सिफत
इसे संग और गच से किया है करखत।
शिमाल और मग़रिब में दरवाज़ा चार
कि ताके धूप में लोग पायें क़रार।
शिमाल और मशरिक़ खुले घाट हैं
दक्कन की तरफ भी यही ठाट हैं।
नया चबूतरा माहताबी भी है
कमर खासियत में कि आबी भी है।
जो नापा गया हौज में चबूतरा
छियासठ फुटों में वह लम्बा हुआ।
पडीं छोटी छोटी सी थी किश्तियाँ
बत्तखें की तरह हौज़ में फिरतियाँ।
यह छ सौ पिचहत्तर का लम्बा है हौज़
मगर चैदह फुट पुख्ता ऊँचा है हौज।
जहाँ जमना से पानी आता रहा
निकल करके झरनों से जाता रहा।
चली झरनों से पुख्ता लम्बी नहर
गई बाबा पिटटी में जाकर ठहर।
कुऐं तीन सौ साठ अलावा अजीं
वह सब संग खारा के थे सब हसीं
बनी है सरे हौज़ जो सहे दरी
कसौटी के थम से मज़्ायन वह थी
वह थम अब कलन्दर में पहुँचा दिये
कि दुनिया में कोई ना फिर ले सके।
गढ़ी में नहीं काम शाहों से कम
पर अब इसकी हालत पे है दीदा नम
बागबानों की बागबानी को जो थे बागबाँ
उन्हीं की औलाद माली है यहाँ
खुली मुझ पे अब तक ना यह गुलझटी
सवा पहर क्योंकर है कंकर लडी।
नहीं उम्दगी में कुछ इसके कलाम
जिसे दुनिया कहती है बाडा इमाम।
जिन्होंने किया मुखतसर यह बयाँ
सफी है तखल्लुस, हैं महमूद खाँ।
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नोटः पूरी किताब जोकि उर्दू में है
7 feb 2019 men Urdu short Book bhi Daal di
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