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गदर 1857 शामली में जंग जीत लेना झोंपडी से old story मुहम्‍मद उमर कैरानवी

यहॉ आस पास के सभी कस्बों गाँवों का इतिहास महत्वपूर्ण है। थानाभवन के हाफिज़ ज़ामिन शहीद, कैराना के मौलाना रहमतुल्लाह कैरानवी जिन्हें मेमार-ए-मुजाहिद अर्थात यौद्धा श्रष्टा की उपाधि दी गयी का गदर में महत्वपूर्ण रोल रहा है कुछ दूरी पर देवबन्द, सहारनपुर और गंगोह के गदर नायकों पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गई हैं।शाही दौर मैं कैराना का महत्व रहा तो अंग्रेज़ी शासनकाल में शामली की बहुत उन्नति हुई, शामली का उस समय इस क्षेत्रा का लडाईयों का केन्द्र होने के कारण यहां फौजी छाँवनियाँ बनाई गयी, जिससे चारों और फौज भेजी जा सके, इसी उन्नति की देन यहाँ पर कचहरी होना भी था। जिसका ऐतिहासिक पुस्तकों में वर्णन से पता चलता है कि यह बहुत बडा महल था जिसको कचहरी का रूप दे दिया गया था और गदर-1857 में यही महल फौजी छावनी बन गया था। इस महल का मुख्य प्रवेश द्वार विशाल था। 






Zamin Saheed yaadgar [ajanta to phuwwara Road]

अब उस स्थान पर सहारपुर बस स्टेंड है।गदर में पूरे देश में आग लगी थी तब क्षेत्रावासियों में अमन व सकून कहाँ था, देश के दुशमनों को यहाँ भी ज़ोरदार टक्कर दी जारही थी। एक बार हमारे वीरों का ऐसा भी दिन आया कि शामली की अंग्रेज़ी फौज को हरा दिया, बचे हुए फौजियों ने तहसील शामली में पनाह ली और विशाल प्रवेश द्वार बन्द कर लिया। अंग्रेजों कि फौज अन्दर आड से गोलाबारी करती रही हमारे युद्धवीर बगैर किसी आड के सीना ताने खडे थे, हथियार भी उनके पास आधुनिक न थे। अंगे्रज फौज को यह मौक़ा मिलता तो वह तुरन्त गोला बारूद से द्वार उडा देती और महल पर कब्ज़ा कर लेती।इन युदध्‍वीरों में रशीद अहमद गंगोही, हाफिज ज़ामिन शहीद और मौलाना मौहम्म्द क़ासिम साहब जिन्होंने देवबन्द मदरसे की स्थापना की थी का नाम पुस्तकों में मिलता है। इसी गोलाबारी में क़ासिम साहब को युक्ति महल में घुसने की सूझी जिसे यूँ अपनाया गया कि महल के पास बनी एक झोपड़ी को तहसील के प्रवेश द्वार के साथ रख कर जला दिया गया। जिससे महल का द्वार जल गया फिर हमारे वीरों ने फौज तो फौज तहसील की ईन्ट से ईन्ट बजा दी जिससे उस पल शामली पर पूरी तरह हमारे वीरों का कबजा हो गया। इस जंग में हाफिज ज़ामिन शहीद हो गये उनकी नाफ पर गोली लगी थी।इसी कारण कुछ समय पश्चात तहसील कैराना में बनाई गई जो कि सदैव अमन की धरती रही है।

अधिक विस्तृत विवरण के लिऐ पढें उर्दू पुस्तक ‘‘जिहादे शामली व थानाभवन’’  और दिल्ली से छपी ‘कौमी महाज़े आज़ादी में यू.पी. के मुसलमान’’।



अफसोस की बात है इतनी महत्‍वपूर्ण एतिहासिक स्‍थान की सरकार यादगार न बना कर उस स्‍थान पर बैंक बना रही है, जिसके एक वकील साहब ने किसी तरह इसका केस कोर्ट में लड रहे हैं जिसके कारण तामीर रूकी हुई है वर्ना सरकार ने जहां यादगार बनानी थी वहां बैंक कब का खडा कर दिया होता ।
विडियो लिंक
http://www.youtube.com/watch?v=Mn5946QPQNs





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